कहते हैं कि नरक भले ही बहुत बुरा होता हो, लेकिन नौकरशाही उसे भी कड़ी टक्कर देने, और यहां तक की मात देने की क्षमता रखती है। गाजियाबाद से आने वाली एक खबर से इसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है। इस समय उत्तर भारत के सभी मैदानी इलाकों में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है, ऐसे में शहरों के बेघरबार लोगों के लिए एक ही आसरा होता है- रैन बसेरा। गरीब लोग अपनी रात किसी छत के नीचे गुजार सकें, इसके लिए जहां कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं इसकी व्यवस्था करती हैं. तो वहीं स्थानीय प्रशासन भी इसके लिए बड़े पैमाने पर इंतजाम करता है। जहां सरकारी काम है, वहां इसके कई नियम-कायदे भी होते हैं। सरकारी रैन बसेरों में कोई भी बेघर अपनी रात गुजार सकता है, उसके लिए बिस्तर कंबल आदि का भी पूरा इंतजाम है, लेकिन नियम यह कहता है कि इनमें प्रवेश के लिए व्यक्ति को किसी भी तरह का पहचानपत्र दिखाना होगा। दूरदराज के शहरों, कस्बों, गांवों से काम की तलाश में आने वाले लोग अपने साथ अपना खाली पेट और अपनी समस्याएं तो लाते हैं, लेकिन अपने कागजात अक्सर नहीं लाते । नतीजा यह है कि ये सरकारी रैन बसेरे खाली पड़े हैं, जबकि बहुत सारे लोग इस रिकॉर्ड तोड़ भीषण सर्दी में स?कों और फटपाथों पर अपनी रातें बिताने को मजबूर हैं। हालांकि स्थानीय प्रशासन यह कह रहा है कि उसने पहचान पत्र मांगने से मना कर दिया है, लेकिन बेघर लोगों को यह डर है कि अगर आधी रात में कहीं जांच हो गई, तो पहचान पत्र न होने की वजह से उन्हें वहां से निकाल दिया जाएगा। रैन बसेरों में रात गुजारने वालों से पहचान पत्र मांगने का नियम क्यों बना होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है। यह सुरक्षा के नजरिए से भी जरूरी हो सकता है और इसलिए भी कि आसामाजिक तत्व इन्हें अपने छिपने का ठिकाना न बना लें। लेकिन यही नियम अगर इस भीषण सर्दी में लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर रहा हो और उनकी जान जोखिम में डाल रहा हो. तो इसका अर्थ यह है कि हमें वैकल्पिक तरीके तरंत खोजने चाहिए, ताकि लोगों को मौसम की अति से बचाया जा सके। जहां तक सुरक्षा का मामला है, तो थोड़ी सी सतर्कता बरतकर बिना पहचान पत्र के भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। वह भी तब, जब भीषण सर्दी का यह मौसम तीनचार सप्ताह से ज्यादा नहीं चलने वाला। सिर्फ एक सरकारी नियम की वजह से लोग सर्दी में दम तोड़ दें या बीमार हो जाएं, यह स्थिति किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं की जा सकती। यह स्थिति हमारे समाज की कई अन्य हकीकतों की ओर भी ध्यान खींचती है। हमारे यहां आधार और मतदाता पहचान पत्र के बहुत बड़े विस्तार के बावजूद अब भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनके पास कोई पहचान पत्र नहीं है। जिनके पास है, वे उसे बहुत संभालकर रखते हैं, उसे हमेशा अपने पास रखकर खो देने का जोखिम नहीं उठाते।
उत्तर भारत में ठिठुरन